Saroj Verma

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एक थी नचनिया--भाग(२४)

और उसे झटका सा लगा लेकिन फिर भी वो अपनी बेइज्जती को दरकिनार करते हुए विचित्रवीर से बोला..... "आपको कोई गलतफहमी हुई है रायजादा साहब!मैं ही जुझार सिंह हूँ", "ओह....माँफ कीजिए,आप शक्ल से जमींदार मालूम नहीं होते,लेकिन फिर भी कोई बात नहीं,अब आपको दादी माँ ने सिनेमाहॉल के प्रोजेक्ट में साँझेदार बना ही लिया है तो फिर मैं क्या कर सकता हूँ",विचित्रवीर बना मोरमुकुट बोला.... "ये कैसीं बातें कर रहा है तू! जब मैं तुझसे इतने सालों से कह रही थीं कि विलायत से वापस आकर अपने दादाजी की ख्वाहिश पूरी कर जा,तब तो तू नहीं आया उस कलमुँही गोरी मेम के चक्कर में और जब मैंने यहाँ साझेदार ढूढ़ लिया है तो तुझे बड़ा बुरा लग रहा है",रुपतारा रायजादा बोलीं.... "दादी माँ! मेरे कहने का वो मतलब नहीं था",विचित्रवीर रायजादा बोला.... "मैं खूब समझती हूँ कि तेरे कहने का क्या मतलब था",रुपतारा रायजादा बोलीं.... "दादी! मैंने ऐसा कुछ कहा ही नहीं है,जो आप मुझ पर इतना बिगड़ रहीं हैं",विचित्रवीर रायजादा बोला.... "तूने अपनी तमीज़ बेंच खाई है क्या? जो तू मुझसे ऐसे बतमीजी कर रहा है", रुपतारा रायजादा बोलीं.... "दादी माँ! ये आप कैसीं बातें कर रहीं हैं",विचित्रवीर रायजादा बोला.... "अब तू मुझे बात करना सिखाएगा,तेरी इतनी हिम्मत",रुपतारा रायजादा बोलीं.... "दादी माँ! मैं इसलिए विलायत से नहीं आ रहा था,मुझे मालूम था कि आप मेरे साथ ऐसा ही करेगीं", विचित्रवीर रायजादा बोला.... "ऐसी बात है तो मुझे अब घर जाना है,मैं तेरे साथ यहाँ और नहीं रुक सकती",रुपतारा रायजादा बोली.... "ड्राइवर! मोटर घर की ओर ले चलो",विचित्रवीर भी गुस्से से बोला.... "बड़ा आया ड्राइवर को हुकुम देने वाला,ये मोटर मेरी है और इस ड्राइवर को मैं पगार देती हूँ,मैं जैसा चाहूँगी तो ड्राइवर को वैसा ही करना पड़ेगा,समझा तू!",रुपतारा रायजादा बोलीं.... अब दादी और पोते के बीच झगड़ा ज्यादा बढ़ता हुआ देखकर खूबचन्द निगम बने खुराना साहब बोले.... "मालकिन! जरा मेहमान का तो ख्याल कीजिए,आप दोनों को ऐसा करना शोभा नहीं देता", "मैनेजर साहब! आप इस बेवकूफ़ को क्यों नहीं समझाते",रुपतारा रायजादा बोलीं.... "जी! वो तो नादान है,जरा आप ही धीरज धर लें",खूबचन्द निगम बने खुराना साहब बोले.... "आप कहते हैं तो ठीक है",रुपतारा रायजादा बोलीं.... "तो फिर मोटर से बाहर चलिए आप दोनों,देखिए तो जुझार सिंह जी कब से आप दोनों के स्वागत के लिए खड़े हैं",खूबचन्द निगम बने खुराना साहब बोलें.... और फिर खूबचन्द निगम बने खुराना साहब के कहने पर रुपतारा रायजादा और विचित्रवीर रायजादा मोटर से बाहर आएं,इस बीच जुझार सिंह उनके पास आकर बोला.... "मिसेज रायजादा! मुझे लगता नहीं है कि आपके पोते को सिनेमाहॉल बनाने में कोई दिलचस्पी है", "आपसे किसी ने राय माँगी जो आप मुँह उठाकर चले आएं",विचित्रवीर रायजादा बोला.... "हाँ! हम दादी पोते के बीच कुछ भी हो ,तुमसे बीच में टाँग अड़ाने को किसने कहा",रुपतारा रायजादा बोलीं.... "मैं तो यूँ ही कह रहा था",जुझार सिंह बोला... "तुमसे किसी ने कुछ कहने को कहा क्या?",रुपतारा रायजादा बोली... "जी! नहीं कहा",जुझार सिंह बोला... "तो फिर तुम बीच में क्यों बोले"?,रुपतारा रायजादा बोलीं.... "वो बस यूँ ही,मुझे लगा कि शायद आपका पोता सिनेमाहॉल बनने के खिलाफ है",जुझार सिंह बोला.... "नहीं! ऐसी कोई बात नहीं है,आप ज्यादा अटकलें मत लगाइए",विचित्रवीर रायजादा बोला.... "मुझे ऐसा महसूस हुआ इसलिए कह दिया"जुझार सिंह बोला... "मैं तो हमेशा से चाहता था कि दादा जी का सपना पूरा हो,लेकिन आप तो दादी के मन में मेरे खिलाफ जहर घोल रहे हैं",विचित्रवीर रायजादा बोला.... "आपको कोई गलतफहमी हो रही है रायजादा साहब!",जुझार सिंह बोला.... "मुझे बिलकुल भी गलतफहमी नहीं हो रही है,आप हम दादी पोते के बीच दरार डाल रहे हैं",विचित्रवीर रायजादा बोला.... "अब ये सब छोड़िए,अब क्या सारी बातें यही होतीं रहेगीं,रेस्तराँ के भीतर चलकर भी तो बातें हो सकतीं हैं", खूबचन्द निगम बने खुराना साहब बोले..... "हाँ! चलिए! मैं वैसे भी इनसे कोई बहस नहीं करना चाहता",विचित्रवीर रायजादा बोला.... इसके बाद दादी और पोते रेस्तराँ के भीतर जाने लगे तो उनके पीछे पीछे चल रहा जुझार सिंह निगम साहब से बोला.... "दादी की तरह ही पोता भी बड़ा ही बतमीज है,कोई कहेगा भला कि ये विलायत में रहता है,मेरे बेटे को देखिएगा आप कभी,वो कितना सभ्य और शालीन है,जब कि उसकी तालीम तो हिन्दुस्तान में ही हुई है", "अब मैं क्या बोलूँ जनाब! मैं तो इनसे कुछ कह ही नहीं सकता,मैं ठहरा अदना सा नौकर,मैनेजर हूँ इन लोगों का और इन लोगों की दी हुई पगार पर मेरी गृहस्थी चलती है,अगर मैंने इन लोगों से बहस करनी शुरु कर दी तो लात मारकर नौकरी से निकाल देगें,तब मैं बूढ़ा आदमी कहाँ जाऊँगा,बूढ़ी और बीमार पत्नी है,कई बेटे भी हैं जो कुछ करते धरते नहीं है,मेरे जीने का तो बस यही नौकरी सहारा है,मेरे बाप दादा भी इनके यहाँ मुनीम थे और उस परम्परा को मैंने भी अब तक कायम रखा है",खूबचन्द निगम जुझार सिंह से बोलें.... "मैं आपको नौकरी छोड़ने को थोड़े ही कह रहा हूँ,बस आपको इन लोगों की हरकत से वाकिफ करवा रहा हूँ",जुझार सिंह बोला.... "मैं इन लोगों की हरकतों से बहुत अच्छी तरह से वाकिफ हूँ जनाब! ये बाल इन लोगों की हरकते देख देखकर ही सफेद हुए हैं",खूबचन्द निगम बोले..... तभी विचित्रवीर की आवाज़ आई.... "आप दोनों पीछे रहकर क्या खुसर पुसर कर रहे हैं"? "कुछ नहीं छोटे मालिक! मैं तो इन साहब को आपकी विरासत के बारें में बता रहा था",खूबचन्द निगम बोले.... "वो आप इन्हें बाद में बता दीजिएगा,पहले जिस काम के लिए यहाँ आएँ हैं वो निपटा लें",विचित्रवीर बोला.... "जी! छोटे मालिक",खूबचन्द निगम बोले.... फिर सब रेस्तराँ के भीतर पहुँचे और काँफी आर्डर की गईं और सिनेमाहॉल के बारें में बातें शुरु हुई और फिर सबकी रजामन्दी पर जुझार सिंह बोला..... "मैं तैयार हूँ आपके साथ काम करने के लिए लेकिन आप में से कौन मेरे साथ वहाँ चलेगा" ये सुनकर खूबचन्द निगम बोले.... "मैं ही चलूँगा,आपके साथ क्योंकि मालकिन तो बूढ़ी हो चलीं हैं और उन्हें अपना कारोबार भी देखना पड़ता है,छोटे मालिक भी आपके साथ नहीं जा सकते क्योंकि उन्हें वापस विलायत भी तो जाना है", "ये नहीं चलेगा,आप दोनों में से किसी को तो मेरे साथ चलना ही होगा,मैं मैनेजर साहब को अपने साथ नहीं ले जाऊँगा",जुझार सिंह बोला.... ये सुनकर सभी एक दूसरे की शक्ल देखने लगे तो तब रुपतारा रायजादा बोलीं.... "ठीक है तो फिर मैं सोचकर बताती हूँ"

क्रमशः.... सरोज वर्मा....

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3 Comments

Gunjan Kamal

31-Dec-2023 11:29 AM

शानदार भाग

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Shnaya

30-Dec-2023 10:02 AM

Nice one

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Milind salve

29-Dec-2023 01:40 PM

Nice part

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